Saturday 26 September 2009

 

टर्निंग पॉइंट


हमारे जेहन में एक बार भी गहराई तक यह बात बैठ जाए कि ईश्वर ने हमें जो यह अमूल्य जीवन दिया है उसको भरपूर आनन्द के साथ जीना चाहिए तथा यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि इस धरती पर हम अमर हो गए हैं, तो शायद हमारी सोच में अनूठा बदलाव आ सकता है और जीवन की धारा बदल सकती है। मनुष्य मरण धर्मा है, उसे अमर कैसे किया जा सकता है। हम मृत्यु से घिरे हैं। हमारे कर्म भी मृत्यु से घिरे हैं, इसलिए मृत्यु अवश्यंभावी है। इस धरती पर बाकी सब कुछ बहस या तर्क का विषय हो सकता है परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि जीवन स्थायी नहीं है। कोई व्यक्ति कुछ वर्ष ज्यादा जी सकता है तो कोई अल्पायु हो सकता है परन्तु यहां स्थायी निवास किसी का नहीं है।
हम वर्ष-दर-वर्ष, महीना-दर-महीना, दिन-ब-दिन यह देखते रहते हैं कि कभी कोई हमारा परिचित इस जहान् से चला गया, कभी कोई अभिन्न मित्र हमेशा के लिए बिछुड़ गया, कभी हमारा कोई परिजन ही यह संसार छोड़कर चल दिया परन्तु इस यथार्थ को हम कुछ घंटों में ही भुला देते हैं और वही गलाकाट प्रतिस्पर्धा, वही तू-तू, मैं-मैं, वही भागदौड़ भरी जिंदगी, वही पीठ पीछे बुराइयां करने की आदतें, वही दूसरों को पीड़ा पहुंचाने का व्यवहार, वही किसी की खिल्ली उड़ाने की प्रवृत्ति और पैसा, सुख-सुविधाएं जुटाने की होड़ में हम उलझ कर रह जाते हैं। बिल्कुल बदलाव नहीं आता। रिश्ते-नाते सब कुछ ताक पर रखकर अहम की अकड़ में हम इतने तन जाते हैं कि हमें अपने कद के बराबर कोई भी नहीं दिखाई देता। हम ऐसा बर्ताव करने लगते हैं, जैसे भगवान ने हमें इसी रूप में जन्म दिया थाऔर हम हमेशा ऐसे ही अजर अमर रहने वाले हैं। हम अपने अतीत को मिनटों में भूल जाते हैं और भविष्य के बारे में भी पल भर का चिंतन नहीं करते। अगर रोज कुछ पल भी हम इतना चिंतन-मनन करें कि कल क्या था और कल क्या हो सकता है, कुछ भी हमारे वश में नहीं है, फिर किस बात की अकड़? तो शायद हमारे जीवन की धारा बदल जाए।
कहते हैं कि एक चीनी दार्शनिक थे च्वांगत्सु। एक बार किसी कब्रिस्तान से गुजर रहे थे तो वहां पड़ी एक खोपड़ी को उनकी ठोकर लग गई। उन्होंने तुरंत खोपड़ी से क्षमा याचना की। जो लोग साथ में चल रहे थे, उन्होंने सोचा, लगता है बुढ़ापे में सठिया गए हैं, अन्यथा भला खोपड़ी से काहे की माफी? च्वांगत्सु ने कहा कि यह कोई मामूली आदमी की खोपड़ी नहीं है। यह मरघट कोई साधारण नहीं है। यहां कई राजा-महाराजा, सेनापति, बड़े बड़े रसूख वाले लोग दफनाए गए हैं। पता नहीं, कल कौन मुसीबत खड़ी कर दे। साथ वालों ने कहा, कोई भी हो क्या फर्क पड़ता है? जो मर ही गया है, उसका क्या? वह आपका क्या बिगाड़ लेगा? लेकिन च्वांगत्सु ने किसी की नहीं सुनी। वह खोपड़ी को अपने साथ ले आए। जिंदगी भर उन्होंने वह खोपड़ी अपने साथ रखी। मरते दम तक उन्होंने खोपड़ी का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा, इस खोपड़ी को देखकर मुझ में यह अहसास बना रहता है कि आज नहीं तो कल, मेरी खोपड़ी भी मरघट में पड़ी रहेगी। किसी की ठोकर लगेगी तो वह माफी भी नहीं मांगेगा । लोग लात मार देंगे, गाली भी निकालेंगे, हिकारत भरी नजरों से देखेंगे। सोचता हूं तो फिर क्या फर्क पड़ता है जब आज भी कोई सिर में मार देता है, कोई अभद्र व्यवहार करता है, गाली दे देता है, बुराई करता है। मैं एक बार खोपड़ी की तरफ देख लेता हूं और सहज हो जाता हूं। खोपड़ी तो यही है। आज मेरी खोपड़ी पर मांस और चमड़ी चढ़ी है। मेरा सिर भी तो एक दिन खोपड़ी ही बनने वाला है। कोई कैसा भी बर्ताव करे, क्या फर्क पड़ता है। दस, बीस साल बाद इस खोपड़ी के साथ अगर कोई ऐसा व्यवहार करेगा, जैसा आज कर रहा है तो क्या फर्क पड़ने वाला है।
अगर च्वांगत्सु जैसा एहसास हर व्यक्ति के मन में जाग जाए तो शायद कुछ चमत्कार हो जाए। यह नितांत असंभव भी नहीं है। कभी कभी जीवन में यों ही टर्निंग पॉइंट आते हैं। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, कभी नहीं बदलते। पत्थर की तरह होते हैं। किसी शायर की इन पंक्तियों में जीवन के टर्निंग प्वाइंट और इंसानी प्रवृत्ति पर कितने सटीक ढंग से प्रकाश डाला गया है-
कभी सोचा ये, तुमने जिंदगी में,
हवा का रुख, बदलता है घड़ी में।
पर जो पत्थर है वो पत्थर ही रहेगा
पहाड़ों पर हो, या बहती नदी में॥

Comments:
शुभ विचार।
-------
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
( Treasurer-S. T. )
 
प्रेरक विचार...बहुत उम्दा प्रस्तुति. आभार.
 
बहुत ही सुंदर विचार, कहानी भी अच्छी लगी.
आप का धन्यवाद
 
Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]





<< Home

This page is powered by Blogger. Isn't yours?

Subscribe to Posts [Atom]