Wednesday, 22 October 2008
... दौड़ जारी है
प्रतिस्पध्र्दा का जमाना है। धीरे-धीरे चलने से काम नहीं चल सकता। धीरे चलने मेें दूसरों से पिछड़ जाने की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए धीरे कौन चलना चाहेगा? बात भी सही है। इसलिए हर कोई जल्दबाजी में है। इतनी जल्दबाजी में, कि सोच भी नहीं पा रहे कि क्या इतनी जल्दबाजी जरूरी है?
मुझे दो घटनाएं ध्यान आती हैंजो कहीं पढ़ी थी। बड़ी रोचक हैं। एक बार एक आदमी घोड़े पर बैठा तेजी से भागा जा रहा था। पहचानने वाले कुछ लोगों ने रास्ते में उसे टोका - 'क्यों भाई, कहां जा रहे हो, क्या हो गया? लेकिन उसने कहा, अभी समय नहीं है, जल्दी में हूं, बाद में बताऊंगा। घोड़े को दौड़ाते हुए निकल गया। करीब दो घंटे बाद वापस लौटा तो थका हुआ था, उदास था। वही लोग मिल गए। उन्होंने उससे पूछा, 'मामला क्या था, इतनी जल्दी क्या थी, बात ही नहीं सुन रहे थे, कहां जा रहे थे ? उसने कहा कि दरअसल मैं अपने घोड़े को खोजने जा रहा था और इतनी जल्दी में था कि यही भूल गया कि मैं उसी घोड़े पर बैठा हुआ हूं।
दूसरी घटना, एक महानगर की किसी बहुमंजिली इमारत में आग लग गई। कम से कम बीस मंजिली रिहायशी इमारत थी। आग लग गई तो बिल्डिंग में भगदड़ मच गई। लोग इधर-उधर भागने लगे। चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल बन गया। आग की लपटें बढ़ती जा रही थीं और लोग सीढ़ियों से, लिफ्ट से, जैसे भी संभव था, बाहर भाग रहे थे। थोड़ी देर में पूरी इमारत खाली हो गई। भीड़ नीचे खड़ी नजारा देख रही थी। एक महाशय आराम से टहलते हुए इमारत से बाहर आए। उन्होंने भीड़ की ओर मुखातिब होकर कहा, 'अजीब लोग हैं आप। इमारत में आग क्या लग गई, आसमान सिर पर उठा लिया। अफरा-तफरी मचा दी। इतना भी क्या डर, ऐसी भी क्या घबराहट? एक मुझे देखिए, जब पता चला कि भवन में आग लग गई है तब मैं चाय पी रहा था। मैंने चाय पूरी की। टाई वगैरह लगाई, सिगार सुलगाया और फिर आराम से सीढियों से उतरते हुए यहां पहुंचा हूं, कोई घबराहट नहीं, आखिर हम लोग मर्द हैं।'
श्रीमानजी जब अपनी शेखी बघार रहे थे तब लोग मंद-मंद मुस्कुरा भी रहे थे परंतु उनको बीच में किसी ने नहीं टोका। बात खत्म होने के बाद भीड़ में से एक सज्जन ने जोर से कहा, आपकी बहादुरी तो तारीफ के काबिल है परंतु श्रीमानजी आपने कोट और टाई के नीचे पजामा क्यों पहन रखा है? यह सुनकर उन महाशय के होश उड़ गए। बहादुरी धरी रह गई। दरअसल जो पायजामा रात को पहनकर सोए थे हड़बड़ाहट में वही पहने आ गए, पैंट पहनना भूल गए परंतु टाई लगाना नहीं भूले, क्योंकि बहादुरी दिखानी थी।
इस प्रकार अपनी इस दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक वे, जो इतनी जल्दी में है कि होश गंवा बैठे हैं। उन्हें यह भी पता नहीं है कि वे कहा हैं, कर क्या रहे हैं, किस दौड़ में शामिल हैं, किस गति से जा रहे हैं, कहां जा रहे हैं, जहां जा रहे हैं वहां पहुंचेंगे भी या नहीं। उन्हें कुछ पता नहीं है। होश में होते हुए बेहोश हैं। बस दौड़ रहे हैं। घबराहट है, हड़बड़ाहट है।
दूसरे वे, जो मानने को भी तैयार नहीं हैं कि वे जल्दबाजी में हैं। अंधाधुंध दौड़ में शामिल हैं। आज अंदर से खोखले, कमजोर घबराए हुए चिंतित ऐसे लोगों की भरमार है जो ऊपर से बहादुर, निश्चिंत, सहज दिखने का ढोंग करते हैं और अंदर से तिलमिला रहे हैं, छटपटा रहे हैं, कुंठित हैं, कंपकंपा रहे हैं। घबराहट में उल्टे-सीधे कदम उठा रहे हैं, नीचता पर उतारू हैं, कुछ भी करने को आमादा हैं। अपने आप ही किसी को दुश्मन, प्रतिद्वंद्वी, विरोधी मान बैठते हैं। अपनी बनाई धारणाओं के मकड़जाल में उलझे रहते हैं, घुटते रहते हैं परंतु झूठे दंभ के कारण दर्शाते ऐसा हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। होश खो बैठे हैं परंतु मानने को तैयार नहीं। हाेंशियार होने का दंभ भर रहे हैं। दूसरे के सामने प्रदर्शित कर रहे हैं कि वे उनकी बजाय ज्यादा दुरुस्त हैं, ज्यादा समझदार हैं। जबकि असलियत कुछ और ही है। सभी एक ही दौड़ में शामिल हैं। दूसरे से आगे निकल जाने की दौड़। फिर वह चाहे अधिक धन कमाने की दौड़ हो या राजनीतिक पद पाने की, अधिक धनी दिखने की लालसा हो या सामाजिक संगठन में ऊंचा दिखने की। यह अजीबोगरीब दौड़ है जिसमें हर कोई दौड़ रहा है।
जो व्यक्ति धन के पीछे दौड़ रहा है, उसे केवल धन दिखाई दे रहा है, वह उसे पाने को आतुर है, उसी घुड़सवार की तरह जी-जान लगा रहा है। किसी भी तरह से बस मनोकामना पूरी करनी है। इसके लिए वह किसी भी रास्ते से जाने को तैयार है। रास्ता नैतिक है या नहीं, उचित है अथवा अनुचित, इसकी परवाह नहीं। बस लक्ष्य पर पहुंचना ही है। कैसे भी पहुंचे। वह दौड़ता चला जा रहा है। रिश्ते-नाते, नैतिकता, ईमानदारी सब कुछ भूल रहा है। पीछे सब कुछ छूट रहा है परंतु वह घोड़े पर सवार है। जल्दी में है, किसी से बात करने को तैयार नहीं।
कमाने वाला ही नहीं, खर्च करने वाला भी दौड़ में है। जिसने कल किसी शादी, विवाह, मायरा, दशोटन, तिलक, गृहप्रवेश, शादी की वर्षगांठ, जन्मदिन के कार्यक्रम में खर्च किया, आज उसके पड़ोसी या उसके संबंधी या उसके सम-व्यवसायी के यहां वैसा ही कार्यक्रम है तो वह उससे कहीं ज्यादा खर्च करेगा। ऐसा करना उसके लिए जरूरी है, मजबूरी है। क्योंकि वह उस दौड़ में शामिल है। यदि ऐसा नहीं करेगा तो वह दौड़ से बाहर हो जाएगा। कमाने के लिए प्रतिस्पध्र्दा है तो खर्च करने के लिए भी वही दौड़ है, होड़ है।
पद प्राप्ति में भी इस दौड़ का बोलबोला है। पद राजनीतिक क्षेत्र का हो या किसी संगठन का। पद तो पद ही होता है। जब हर क्षेत्र में दौड़ है तो फिर पद के लिए क्यों न हो? पदों की दौड़ तो ऐसी है कि एक दूसरे को टंगड़ी मारकर आगे निकलने में भी कोई झिझक नहीं होती। अपनों को दगा देना पड़े तो उससे भी परहेज नहीं। आज इनसे मतलब निकल रहा है तो इनकी चंपी कर रहे हैं, कल उनकी जरूरत महसूस हुई तो उनके गले लग गए। कोई शर्मीन्दगी नहीं। कोई अफसोस नहीं। पदों की दौड़ मित्रों से दूर कर देती है, रिश्तों में दरारें पैदा कर देती है, हितैषियों को दुश्मन बना देती है, नैतिकता का गला घोंट देती है। मजे की बात तो यह है कि इतना होने के बावजूद भी व्यक्ति को इसका एहसास नहीं होता। वह अपने आपको दुरुस्त समझता है।
इस प्रकार दोनों तरह के लोग दौड़ में शामिल हैं। एक वे जो बेतहासा दौड़ तो रहे हैं परंतु उन्हें मालूम नहीं है कि वे कहां जा रहे हैं, बस दौड़े जा रहे हैं, मशगूल हैं। दूसरे वे, जिन्हें पता है कि वे दौड़े जा रहे हैं, व्यर्थ की दौड़ में शामिल हैं फिर भी स्वीकार करने को तैयार नहीं, वे अपने आपको ज्यादा समझदार मानने वाले हैं। बहरहाल, दौड़ जारी है।
एक सुंदर लेख
धन्यवाद
और यह दौड़ तबतक जारी रहेगा। जबतक हम यह नहीं सोचेंगे कि मेरे होने का मतलब क्या है? मेरे कर्तव्य क्या हैं? जहाँ भी रहें, खुद की सकारात्मक उपस्थिति दर्ज हो, अन्यथा मेरे मित्र रघुनाथ प्रसाद जी के शब्दों में-
भेड़ बकरियों जैसा जीना पेट पालना और सो जाना।
अगर जिन्दगी इसी को कहते इससे अच्छा मर जाना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
वाह श्रीकांत जी साधुवाद
अखबार अभी नहीं मिला
Regards
ek gambheer sochne ko vivash karti hui rachna.........
पता नही आप से मेरा ब्लॉग क्यूं नही खुलता । क्या कोई जानकार इसमें मदद कर सकता है वैसे मै यूनीकोड फॉन्य इस्तेमाल करती हूँ- मंगल ।
हिन्दी - इन्टरनेट
की तरफ से आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
--योगेन्द्र मौदगिल एवं परिवार
दीपावली की शुभकामनायें ! बहुत दिन बाद कुछ अच्छा और ईमानदारी से लिखा पढने को मिला ! मज़ा आगया !
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