Saturday 11 October 2008

 

.........जो अपनी औकात है

हिम्मत किसी में है तो रोक के दिखाए मुझे,

मैं हूं अकेला नहीं, दोस्तों का साथ है।

 

मारने वाले से बड़ा, बचाने वाला होता सदा,

अपने तो ऊपर फिर, ऊपर वाले का हाथ है।

 

हौसला जो रखे ऐसा, उनको न रोके कोई,

दिखने में छोटी दिखे, लाखों की यह बात है,

 

पीठ पीछे रोना छोड़, सामने जाइए,

खुद क्यों भांप लेते, जो आपकी औकात है।

 


Comments:
पीठ पीछे रोना छोड़, सामने आ जाइए!
वाकई लाखों की बात।
 
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
 
बहुत ही धार दार कविता मजा आ गया
धन्यवाद
 
लाखों की नही ये करोडो बल्कि अरबों की बात कह दी श्रीकांत जी ,बहुत बढिया। छू गई आपकी बात दिल को।
 
श्रीकांत जी ये कविता आपकी बढिया लगी पर शब्द बंधन में पूरी तरह से नहीं उतर पायी है । पहले की तुलना में ।
 
अति सुन्दर !
 
अपना पता मैंने आपको मेल कर दिया है कृपया देख लें
प्रस्तुत रचना के लिये बधाई
आपका प्रोफाइल खुल गया
इसकी भी बधाई स्वीकारें
राज भाटिया जी का भी नहीं खुल रहा
 
वाह बहुत ही बढ़िया सुंदर रचना। बधाई श्रीकांत जी
 
इतनी अच्छी रचना पढने का मौका देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
 
पीठ पीछे रोना छोड़, सामने आ जाइए, खुद क्यों न भांप लेते, जो आपकी औकात है।
वाह भाई क्या बात है ।
 
अच्छा लिखा है.
 
बहुत अच्छा लिखा है ....बधाई
 
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