Friday 10 October 2008

 

शाम ही ढल गई


इसकी टोपी उसके सिर, उसकी इसके सिर,

ऐसे ही तो करते उनकी, जिंदगी निकल गई।

 

दिन-रात दोस्तों को बेवकूफ बनाते रहे,

लक्ष्मी तो आई मगर, नीयत फिसल गई।

 

ऐसे लोगों का भला, आप क्या कीजिएगा,

बुध्दि भी आई तो, साइड से निकल गई।

 

दिनभर समझाते रहे, मित्र दिन का महत्व,

समझ में जब आया, तब तक शाम ही ढल गई।


Comments:
वाह वाह ! क्या कहने .
 
ऐसे लोगों का भला, आप क्या कीजिएगा,

बुध्दि भी आई तो, साइड से निकल गई।

bahut achhe....
 
दिनभर समझाते रहे, मित्र दिन का महत्व,

समझ में जब आया, तब तक शाम ही ढल गई।

"or vo sham vapas nahee aatee, bhut sunder bhav hin, or dhltee sham ka chitr mano dil ko apne sath kheench le gya hai..'

regards
 
दिनभर समझाते रहे, मित्र दिन का महत्व,

समझ में जब आया, तब तक शाम ही ढल गई।
 
इसकी टोपी उसके सिर, उसकी इसके सिर,

ऐसे ही तो करते उनकी, जिंदगी निकल गई।

सही कहा ..यही तो है सच अब .:)
 
सही कहा आपने जिंदगी यूँ ही निकल गयी ।बढिया लिखा आपने ।
 
दिन-रात दोस्तों को बेवकूफ बनाते रहे,

लक्ष्मी तो आई मगर, नीयत फिसल गई।
बहुत ही सुन्दर, मजा आ गया,
धन्यवाद
 
दिन-रात दोस्तों को बेवकूफ बनाते रहे..
बहुत खूब. काश लोगों को ये बातें समझ में आ पातीं. पता नहीं क्या मजा है दूसरों को बेवकूफ बनने में.

लिखते रहिये
 
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