Friday, 10 October 2008
शाम ही ढल गई

इसकी टोपी उसके सिर, उसकी इसके सिर,
ऐसे ही तो करते उनकी, जिंदगी निकल गई।
दिन-रात दोस्तों को बेवकूफ बनाते रहे,
लक्ष्मी तो आई मगर, नीयत फिसल गई।
ऐसे लोगों का भला, आप क्या कीजिएगा,
बुध्दि भी आई तो, साइड से निकल गई।
दिनभर समझाते रहे, मित्र दिन का महत्व,
समझ में जब आया, तब तक शाम ही ढल गई।
समझ में जब आया, तब तक शाम ही ढल गई।
"or vo sham vapas nahee aatee, bhut sunder bhav hin, or dhltee sham ka chitr mano dil ko apne sath kheench le gya hai..'
regards
लक्ष्मी तो आई मगर, नीयत फिसल गई।
बहुत ही सुन्दर, मजा आ गया,
धन्यवाद
बहुत खूब. काश लोगों को ये बातें समझ में आ पातीं. पता नहीं क्या मजा है दूसरों को बेवकूफ बनने में.
लिखते रहिये
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